बम बरसते थे, दोस्तों को मरते देखा, उनकी लाशें उठाईं:रूस-यूक्रेन जंग से लौटे भारतीय बोले- भूखे पेट 16-16 घंटे काम किया

 ग्राउंड रिपोर्ट

बम बरसते थे, दोस्तों को मरते देखा, उनकी लाशें उठाईं:रूस-यूक्रेन जंग से लौटे भारतीय बोले- भूखे पेट 16-16 घंटे काम किया                                           रूस-यूक्रेन युद्ध से लौटे भारतीयों की यह कहानी गहराई से उनके खौफनाक अनुभवों को दर्शाती है। ये भारतीय किसी न किसी कारण से रूस या यूक्रेन में नौकरी करने गए थे, लेकिन जब युद्ध शुरू हुआ तो वे उस भयावह परिस्थिति का हिस्सा बन गए। यहां और अधिक जानकारी उनके संघर्ष और जीवित रहने के प्रयासों के बारे में है:


1. **युद्ध के हालात में काम**: 

   इन भारतीयों को युद्धग्रस्त इलाकों में काम करने के लिए मजबूर किया गया। उनका काम सैनिकों के लिए गड्ढे खोदना था, ताकि वे बमबारी से बच सकें। यह काम बेहद खतरनाक और कठिन था क्योंकि युद्ध के दौरान लगातार बमबारी और ड्रोन के हमले होते रहते थे। 16-16 घंटे बिना भोजन के काम करना आम बात थी, जो उनके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत थका देने वाला था।


2. **मौत का सामना**: 

   इन भारतीयों ने अपने दोस्तों और सहकर्मियों को युद्ध में मरते हुए देखा। उनके पास खुद की सुरक्षा के लिए बहुत कम साधन थे। जब भी उन्हें किसी हमले का अंदेशा होता था, वे तुरंत झाड़ियों में छिपने की कोशिश करते थे, ताकि ड्रोन या बमबारी से बच सकें। कुछ मामलों में, उन्हें अपने दोस्तों की लाशों को उठाने और दफनाने का काम भी करना पड़ा।


3. **कैद जैसा अनुभव**:

   युद्ध क्षेत्र में रहने के कारण ये भारतीय न केवल रूसी सैनिकों के अधीन काम कर रहे थे, बल्कि एक तरह से कैदियों जैसा जीवन भी जी रहे थे। युद्ध क्षेत्र छोड़ने का उनके पास कोई आसान रास्ता नहीं था। उन्हें वहां बने रहने के लिए मजबूर किया गया, और युद्ध के नियमों के तहत उनका उपयोग किया जा रहा था।


4. **रूसी सैनिकों के नियंत्रण में**:

   इन भारतीयों का कहना है कि उन्हें रूसी सैनिकों द्वारा ब्लैक सी के पास यूक्रेन बॉर्डर पर ले जाया गया। वहां, वे सैनिकों के निर्देशों पर काम कर रहे थे, और युद्ध के खतरनाक हालातों में खुद को बचाने की जद्दोजहद कर रहे थे।


5. **भय और असुरक्षा**:

   इन लोगों ने लगातार बमों की आवाजें सुनीं, और उनके पास हमेशा यह डर था कि कब कोई हमला उनके सिर पर आ जाएगा। हर पल मौत के साए में जीते हुए उन्होंने बहुत भयावह स्थिति का सामना किया। बिना भोजन और संसाधनों के इतने लंबे समय तक काम करने से उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित हुआ।


यह कहानी न केवल युद्ध की क्रूरता को दिखाती है, बल्कि उन निर्दोष लोगों के संघर्ष को भी उजागर करती है जो अपनी जान बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे थे।रूस-यूक्रेन युद्ध में शामिल होकर लौटे भारतीयों की यह कहानी बेहद दर्दनाक है। इन लोगों ने युद्ध के मैदान में अपने दोस्तों को खोते देखा, उनकी लाशें उठाईं, और कई कठिनाइयों का सामना किया। युद्ध की भीषण परिस्थितियों में इन्हें 16-16 घंटे बिना भोजन के काम करना पड़ा, जिसमें सैनिकों के लिए गड्ढे खोदना और खुद को सुरक्षित रखने के लिए छिपना भी शामिल था। ड्रोन की आवाज़ सुनते ही ये लोग अपनी जान बचाने के लिए झाड़ियों में छिप जाते थे। 


यह अनुभव न केवल युद्ध की क्रूरता को दर्शाता है, बल्कि उन चुनौतियों को भी उजागर करता है, जिनका सामना इन लोगों को अपनी जान बचाने के लिए करना पड़ा।

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