कैसे हुई थी बापू के हत्यारे गोडसे की पहचान? जानें- बचाव पक्ष में रखी गईं थीं क्या दलीलें

 कैसे हुई थी बापू के हत्यारे गोडसे की पहचान? जानें- बचाव पक्ष में रखी गईं थीं क्या दलीलें 


नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने स्वतंत्रता के बाद देश की राजनीति और समाज को गहराई से प्रभावित किया। गांधी की हत्या के बाद गोडसे की पहचान और उसके पक्ष में रखी गई दलीलों के बारे में कुछ और गहराई से समझते हैं।


### गोडसे की पहचान कैसे हुई?


1. **हत्या का घटनाक्रम**: 

   महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को शाम के समय हुई थी, जब वह नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे। गोडसे ने भीड़ के बीच घुसकर गांधी पर तीन गोलियां चलाईं। गांधी का तत्काल निधन हो गया।


2. **तुरंत गिरफ्तारी**:

   गोली मारने के तुरंत बाद, गोडसे ने भागने की कोशिश नहीं की और खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। वह वहां उपस्थित लोगों द्वारा तुरंत पकड़ा गया। उसके पास से .38 बोर की एक पिस्तौल बरामद की गई थी।


3. **गोडसे का पृष्ठभूमि और पहचान**:

   नाथूराम गोडसे एक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन **हिंदू महासभा** से जुड़ा था और उसने **राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)** के साथ भी संबंध बनाए थे। वह एक प्रभावशाली वक्ता था और "हिंदू राष्ट्र" की विचारधारा में विश्वास करता था। गोडसे का मानना था कि महात्मा गांधी के सिद्धांत हिंदुओं के लिए हानिकारक थे और उन्होंने देश का विभाजन कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसने खुद को गांधी की हत्या के पीछे की पूरी साजिश का केंद्र बताया।


4. **सबूत**:

   - **गोडसे के पास से मिले दस्तावेज़**: गोडसे के पास से कई पत्र और दस्तावेज़ मिले, जिनमें उसके विचार और योजना के बारे में स्पष्ट संकेत थे। इन दस्तावेजों में उसने गांधी की हत्या का उद्देश्य भी लिखा था।

   - **हत्या स्थल पर मौजूद लोग**: घटना के समय वहां कई लोग मौजूद थे, जिनमें गांधी के निकट सहयोगी भी थे। उनकी गवाही से गोडसे की पहचान स्पष्ट हो गई।


### गोडसे के बचाव पक्ष में रखी गईं दलीलें:


नाथूराम गोडसे ने अदालत में महात्मा गांधी की हत्या की जिम्मेदारी स्वीकार की, लेकिन उसने अपने कृत्य को एक राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया। उसके बचाव पक्ष में कई महत्वपूर्ण दलीलें दी गईं:


1. **राजनीतिक असहमति का तर्क**:

   गोडसे ने कहा कि वह गांधी के अहिंसा और हिंदू-मुस्लिम एकता के विचारों से असहमत था। उसका मानना था कि गांधी ने हमेशा मुस्लिमों के पक्ष में निर्णय लिए, और हिंदुओं के हितों की उपेक्षा की। उसके अनुसार, गांधी का समर्थन मुस्लिम लीग के प्रति नरम था, जिसने विभाजन और लाखों हिंदुओं की मौत और विस्थापन को जन्म दिया।


2. **हिंदू राष्ट्रवादी दृष्टिकोण**:

   गोडसे एक कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी था। उसने अदालत में अपने बयान में कहा कि वह "राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों" का पालन कर रहा था। उसने गांधी पर यह आरोप लगाया कि उनके सिद्धांतों ने राष्ट्र के हिंदू चरित्र को कमजोर किया, और इसलिए उसे गांधी की हत्या एक राष्ट्रवादी कर्तव्य के रूप में करनी पड़ी।


3. **अहिंसा की नीति से असहमति**:

   गोडसे ने गांधी की अहिंसा की नीति को कमजोर और अव्यवहारिक बताया। उसका तर्क था कि अहिंसा के कारण देश ने कई बार हिंसा का सामना किया और गांधी की यह नीति देश की रक्षा के लिए हानिकारक थी। उसने कहा कि गांधी की नीतियों के कारण विभाजन हुआ और लाखों हिंदुओं को अपने घरों से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।


4. **गांधी की हत्या का "समय"**:

   गोडसे के वकीलों ने यह तर्क दिया कि गांधी की हत्या का समय भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। गांधी उस समय पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये का भुगतान करने की वकालत कर रहे थे, जिससे गोडसे और उसके साथी नाराज थे। उनका मानना था कि यह पैसा पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में इस्तेमाल हो सकता था, लेकिन गांधी इसके पक्ष में थे, जिससे राष्ट्रवादियों में गुस्सा था।


5. **अंतरात्मा का तर्क**:

   गोडसे ने अदालत में दिए गए अपने बयान में कहा कि उसने अपने अंतरात्मा की आवाज़ सुनते हुए यह कदम उठाया। उसने अपने कृत्य को "राष्ट्र के हित में" आवश्यक बताया और इसे एक "धर्मयुद्ध" के रूप में देखा।


### कोर्ट का निर्णय और सजा:


अदालत ने गोडसे के तर्कों को खारिज कर दिया और उसे दोषी करार दिया। गोडसे और उसके साथी नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को फांसी दी गई। गोडसे के अलावा कई अन्य लोग भी इस षड्यंत्र में शामिल थे, जिनमें से कुछ को लंबी सजा दी गई। 


गोडसे के बयान और उसकी विचारधारा ने उस समय भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया। उसके द्वारा उठाए गए तर्कों ने देश में हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर व्यापक बहस छेड़ दी, लेकिन गांधी की हत्या को किसी भी रूप में न्यायोचित नहीं ठहराया जा सका।

महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा की गई थी। गोडसे ने अपने कार्य के पीछे कई तर्क दिए, जिनसे उसकी पहचान और कार्य की पृष्ठभूमि समझी जा सकती है।


### गोडसे की पहचान कैसे हुई


1. **प्रत्यक्षदर्शियों के बयान**: जब गोडसे ने गांधी पर गोली चलाई, वहां कई लोग उपस्थित थे। उन्होंने गोडसे को पहचान लिया और उसके खिलाफ गवाही दी।


2. **गोडसे का गिरफ्तार होना**: हत्या के बाद गोडसे तुरंत पकड़ा गया। उसके पास से एक पिस्तौल और कुछ पत्र मिले, जिससे उसकी पहचान और इरादे स्पष्ट हुए।


3. **गोडसे का बयान**: गोडसे ने पुलिस के सामने अपनी पहचान स्वीकार की और बताया कि उसने गांधी की हत्या क्यों की।


### बचाव पक्ष में रखी गईं दलीलें


गोडसे के वकील ने उसके बचाव में कुछ दलीलें पेश की थीं:


1. **राजनीतिक कारण**: गोडसे ने कहा कि वह गांधी के विचारों और नीतियों से असहमत था, जो उसके अनुसार हिंदू समुदाय के लिए हानिकारक थे। उसने दावा किया कि गांधी ने मुस्लिमों के पक्ष में फैसले लिए, जो हिंदुओं के खिलाफ थे।


2. **गांधी के प्रति घृणा**: गोडसे ने यह तर्क दिया कि गांधी के कथन और कार्यों के कारण ही उसके मन में घृणा पनपी, जिसने उसे यह कृत्य करने के लिए प्रेरित किया।


3. **मानसिक स्थिति**: बचाव पक्ष ने यह भी दलील दी कि गोडसे मानसिक रूप से अस्थिर था, जिससे उसके कार्यों की जिम्मेदारी कम होती है।


4. **संपूर्णता में न्याय**: गोडसे के वकील ने कहा कि गांधी की हत्या को एक समग्र राजनीतिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए, न कि केवल एक व्यक्ति के कृत्य के रूप में।


हालांकि, गोडसे के बचाव पक्ष के सभी तर्कों को अदालत ने स्वीकार नहीं किया, और उसे 15 नवंबर 1949 को फांसी की सजा सुनाई गई।

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