क्षितिज भाग 2 - काव्य खंड 10th Hindi book and syllabus

 

क्षितिज भाग 2 - कस्टम संस्करण

काव्य खंड

अध्याय 1: सूरदास – सूर के पद

मूल पाठ:
मैया! मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मोसौं कहत मूसु मोटी, मसक करि उड़ायो।।
खाय कै मेरी रोटी लोल फरी उड़ायो।
काहे को मारें मोहि, मुख देख मुसुकायो।।
तोहु सिखायि दई है, नाहीं तौ बहायो।
भलै भले मोहि मारौ, डरपौ नंदलालौ।।

व्याख्या:
इस पद में बालकृष्ण अपनी माँ यशोदा से शिकायत कर रहे हैं कि उनका बड़ा भाई दाऊ (बलराम) उन्हें बहुत परेशान करता है। इसमें बाल्यकाल की मासूमियत, भाई-बहन का प्रेम और नोकझोंक भावपूर्ण रूप से उभरी है।

प्रश्न:

  1. सूरदास की भाषा-शैली की विशेषताएँ क्या हैं?

  2. इस पद में बाल भाव की कौन-कौन सी विशेषताएँ दिखाई देती हैं?


अध्याय 2: तुलसीदास – राम लक्ष्मण परशुराम संवाद

मूल पाठ:
सुनहु राम जिन बिनय प्रबोधा।
भय बिनु होइ न प्रीति सनेहा।।
सुधि लेउ निज मरजादा राखा।
मिटिहि कलंक सोचु मन माखा।।

सुनहु सुभाउ मंद मति मोरी।
तौ हित लागि कहौं मति थोरी।।
छमहु छमहु भयहु बड़ मोरे।
उतर देहु बरचसि घनघोरे।।

व्याख्या:
यह संवाद तब होता है जब परशुराम जनकपुरी में शिव धनुष टूटने पर क्रोधित हो उठते हैं। परशुराम की गर्व और क्रोध से भरी भाषा, और राम की विनम्रता तथा मर्यादा का सुंदर चित्रण इस संवाद में है। तुलसीदास ने इस संवाद के माध्यम से वीरता, विनय, और मर्यादा का गहरा संदेश दिया है।

प्रश्न:

  1. तुलसीदास की रचना में संवाद कौशल की विशेषता क्या है?

  2. परशुराम के स्वभाव का वर्णन करें।


अध्याय 3: जयशंकर प्रसाद – स्मृति

मूल पाठ:
स्मृति की रेखाएँ रह-रह कर
उद्भासित हो जातीं हैं।
जैसे–जल में चमक रही हों
डूबी हुईं सनातन वीणा की
स्वर्णिम झंकारें।

व्याख्या:
इस कविता में कवि जयशंकर प्रसाद स्मृति (यादों) की कल्पना एक ऐसी वीणा की तरह करते हैं, जिसकी झंकार समय-समय पर हमारे मन में गूंज उठती है। यह स्मृतियाँ कभी स्पष्ट होती हैं तो कभी जल में चमकते प्रतिबिंब की तरह धुंधली, परंतु भावनाओं में डूबी होती हैं। यह कविता मानव मन की स्मरण शक्ति, गहराई और उसकी संवेदनशीलता को उजागर करती है।

प्रश्न:

  1. कविता में 'स्मृति' को किस प्रतीक से व्यक्त किया गया है?

  2. प्रसाद की काव्य शैली की विशेषताएँ लिखिए।


अध्याय 4: सुमित्रानंदन पंत – तोप

मूल पाठ:
सुनसान रात, एक युद्धभूमि।
दिशाहीन दिशाएँ, टूटी तोपें।
रक्तरंजित धरा की मूक चीत्कार।
शांति की प्रतीक्षा में जलता हुआ मन।

व्याख्या:
इस कविता में पंत जी ने युद्ध की विभीषिका को दर्शाया है। कविता में टूट चुकी तोपें, दिशाहीनता और रक्त से सनी धरती के माध्यम से युद्ध के विनाशकारी परिणामों का चित्र खींचा गया है। अंत में कवि शांति की अपेक्षा करता है। यह कविता मानवतावाद की ओर प्रेरित करती है।

प्रश्न:

  1. 'तोप' कविता का केंद्रीय भाव क्या है?

  2. युद्ध के प्रति कवि का दृष्टिकोण क्या है?


अध्याय 5: निराला – वह तोड़ती पत्थर

मूल पाठ:
वह तोड़ती पत्थर –
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर।
वह तोड़ती पत्थर।

कोई न छायादार पेड़,
वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार
श्रम जलद बिंदु भर – बार-बार
सीने पर – अपने हथौड़े को मारती।

व्याख्या:
निराला जी ने इस कविता में मेहनतकश नारी की छवि को प्रस्तुत किया है। एक स्त्री, जो चिलचिलाती धूप में बिना किसी आराम के पत्थर तोड़ रही है, समाज की कठोर परिस्थितियों का प्रतीक बनकर उभरती है। कवि उस स्त्री की पीड़ा, संघर्ष और मौन सहनशीलता को दर्शाते हैं। यह कविता श्रमिक वर्ग की वास्तविकता को सामने लाती है।

प्रश्न:

  1. कविता में नारी की कौन-कौन सी छवियाँ उभर कर आती हैं?

  2. "वह तोड़ती पत्थर" कविता का मुख्य संदेश क्या है?


अध्याय 6: नागार्जुन – एही ठइयाँ झुलनी हेरानी हो राम!

मूल पाठ:
एही ठइयाँ झुलनी हेरानी हो राम!
बटोहिया के मेले में –
अँगना बहार निकलि अइली
बोलइली मुसुकानि हो राम!

व्याख्या:
यह कविता लोक-जीवन की भावनाओं से भरपूर है। इसमें एक ग्रामीण स्त्री की सौम्यता, लज्जा और उसकी व्याकुलता को बड़े ही सुंदर और सहज भाव से प्रस्तुत किया गया है। नागार्जुन ने लोकभाषा और ग्राम्य संस्कृति की महक को जीवंत किया है।

प्रश्न:

  1. नागार्जुन की कविता में लोकजीवन की कौन-कौन सी झलकियाँ मिलती हैं?

  2. "एही ठइयाँ झुलनी" कविता में स्त्री भाव की अभिव्यक्ति कैसे हुई है?


अध्याय 7: गजानन माधव मुक्तिबोध – भूल-भुलैया

मूल पाठ:
अँधेरे में चलना
अजीब लगता है
चाल की टप-टप
सुनाई पड़ती है –
मन डरता है
आगे क्या होगा?
रास्ते सब जाने-पहचाने हैं
फिर भी खो जाने का डर!

व्याख्या:
यह कविता मानव मन की उलझनों, भय और असमंजस की स्थिति को उजागर करती है। मुक्तिबोध की शैली गूढ़, प्रतीकात्मक और विचारोत्तेजक है। भूल-भुलैया हमारे जीवन की उन परिस्थितियों की ओर इशारा करती है, जहाँ हम सभी कुछ जानने के बावजूद आत्म-संदेह और अंधकार से घिरे होते हैं। यह कविता आत्मचिंतन और आत्मबोध का मार्ग खोलती है।

प्रश्न:

  1. कविता "भूल-भुलैया" का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?

  2. मुक्तिबोध की कविता में आधुनिक जीवन की कौन सी समस्याएँ उजागर होती हैं?


अध्याय 8: कबीर – साखियाँ एवं पद

मूल पाठ:
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय।।

व्याख्या:
कबीरदास की साखियाँ जीवन की सच्चाइयों और अनुभवों का सार प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त पाखंड, अज्ञानता और दिखावे का विरोध करते हुए सच्चे प्रेम, आत्मनिरीक्षण और सद्गुणों की शिक्षा दी है। उनकी भाषा सरल, प्रभावशाली और जनमानस से जुड़ी हुई है।

प्रश्न:

  1. कबीर की साखियों का क्या प्रमुख संदेश है?

  2. 'पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ' साखी से आपको क्या शिक्षा मिलती है?

  3. कबीर की भाषा और शैली की विशेषता बताइए।


अध्याय 9: रामवृक्ष बेनीपुरी – गिल्लू

सारांश:
यह एक मार्मिक रचना है, जिसमें लेखक ने एक गिलहरी के शिशु 'गिल्लू' के साथ अपने भावनात्मक संबंध का वर्णन किया है। गिल्लू घायल अवस्था में लेखक को मिला और उन्होंने उसकी सेवा की। धीरे-धीरे गिल्लू स्वस्थ हो गया और उनके साथ घनिष्ठ संबंध बना लिया। लेखक और गिल्लू के बीच का आत्मीय संबंध, उसकी चंचलता और विदाई के समय की वेदना को लेखक ने अत्यंत संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है।

प्रश्न:

  1. 'गिल्लू' कहानी में लेखक का पशुप्रेम किस रूप में प्रकट होता है?

  2. लेखक और गिल्लू के बीच संबंध को दर्शाते हुए भावनात्मक पक्ष पर टिप्पणी कीजिए।

  3. गिल्लू की मृत्यु पर लेखक की क्या प्रतिक्रिया रही?


अध्याय 10: सुभद्राकुमारी चौहान – कलाकार

सारांश:
यह कहानी एक ऐसे कलाकार की है जो अपने काम से अत्यधिक प्रेम करता है और कला को अपने जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य मानता है। वह सौंदर्य की सच्ची पहचान रखता है और सच्चे भावों को अपने चित्रों में उतारना चाहता है। यह रचना दर्शाती है कि सच्चा कलाकार यश या धन के पीछे नहीं भागता, बल्कि आत्म-संतोष और सच्चे भावों को अभिव्यक्त करने को ही जीवन की सच्ची उपलब्धि मानता है। सुभद्राकुमारी चौहान ने इस रचना में एक कलाकार के त्याग, समर्पण और भावनात्मक संघर्ष को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।

प्रश्न:

  1. कहानी "कलाकार" के माध्यम से सुभद्राकुमारी चौहान क्या संदेश देना चाहती हैं?

  2. कलाकार के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ इस कहानी में उजागर हुई हैं?

  3. कहानी में कला और यथार्थ के बीच क्या संबंध दिखाया गया है?